दरअसल, रोहित मुले नामक किसान की यह कहानी है, जो कि महाराष्ट्र के सांगली में कवलपुर गांव के मूल निवासी हैं। तीन वर्ष पूर्व वह भी आम किसानों की तरह ज्वार, अंगूर की खेती करते थे। परंतु, बाढ़, ओलावृष्टि एवं विभिन्न वजहों से बहुत बार फसल में हानि उठानी पड़ती थी। ऐसी स्थिति में उन्होंने कुछ अलग करने के विषय में सोचा और बहुत सारे स्थानों की यात्रा के साथ-साथ विभिन्न तरीकों की खेती के विषय में जानकारी इकट्ठी की। इस दौरान उनका ध्यान जिरेनियम की खेती पर गया। उन्हें जानकारी मिली कि जिरेनियम, लैवेंडर एवं लेमन ग्रास की भांति ही परफ्यूम प्लांट है। इन समस्त पौधों की पत्तियों से निकलने वाले तेल का उपयोग इशेंसियल ऑयल्स एवं परफ्यूम आदि में होता है। साथ ही, इस खेती से उन्हें ज्यादा मुनाफा मिल सकता है। फिर उन्होंने जिरेनियम की खेती करने का मन बना लिया।
रोहित ने पांच एकड़ की भूमि पर जिरेनियम की खेती चालू कर दी है। इस दौरान उन्होंने कहा है, कि जिरेनियम की खेती बीज से नहीं बल्कि कटिंग के माध्यम से की जाती है। जिरेनियम के शूट्स को नर्सरी में नवीन पौधे तैयार करने के लिए उपयोग करते हैं।
जिरेनियम की खेती के लिए उपयुक्त तापमान क्या है
जिरेनियम उत्पादक किसान रोहित का कहना है, कि जिरेनियम की खेती के लिए सामान्य तापमान 30-35 डिग्री के मध्य होना चाहिए। ऐसे तापमान में आसानी से जिरेनियम की खेती की जा सकती है। एक एकड़ में जिरेनियम के 12000 पौधे रोपे जाते हैं। इसके अतिरिक्त, जिरेनियम की सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन (drip irrigation) प्रणाली होनी चाहिए।
जिरेनियम की पहली फसल कितने दिनों में पककर तैयार हो जाती है
किसान रोहित के कहने के अनुसार, जिरेनियम की खेती करने पर आपको प्रथम फसल साढ़े चार माह उपरांत ही प्राप्त हो जाती है। इसकी खेती को करने में पहली बार पौधों सहित इरीगेशन सिस्टम, खरपतवार व लेबर की लागत 1 लाख 20 हजार हो सकती है। वर्तमान में एक किलो जिरेनियम तेल की कीमत तकरीबन साढ़े आठ हजार रुपये है। एक एकड़ से एक बार में 14 से 15 किलो तेल प्राप्त हो जाता है। बतादें, कि इससे पहली लागत वसूल की जा सकती है।
किसान रोहित का कहना है, कि जिरेनियम खेती की पहली कटिंग के पश्चात प्रत्येक साढ़े तीन माह में इसकी फसल हांसिल की जा सकती है। इसके पौधे तीन वर्ष तक रहते हैं। इस प्रकार से हर तीन महीने में वह लाखों की आमदनी कर लेते हैं। उनका कहना है, कि खेती से 150 किलो जिरेनियम का तेल अर्जित होता है, जिसकी आमदनी 12 लाख रुपये होती है।
जैसा कि हम जानते हैं, कि गन्ना एक वर्षभर की फसल है। एक अनुमान के अनुसार, गन्ने की फसल को 1500 से 2500 मिलीमीटर जल की आवश्यकता होती है। बतादें, कि प्रति किलोग्राम गन्ना की उपज में 1500 से 3000 हजार लीटर जल की आवश्यकता होती है। इतना तो तब है, जब कृषक अपने खेत की परंपरागत ढ़ंग से पोखर, नलकूप, पंपिगसेट और तालाब से सिंचाई करते हैं। इस प्रकार सिंचाई करने से आधा से ज्यादा जल की बर्बादी हो जाती है। अगर खेत पूर्णतय समतल नहीं है, तो कहीं कम और कहीं ज्यादा जल लगने से फसल में नुकसान हो जाता है।
ड्रिप इरीगेशन बच पाएगी 50 प्रतिशत जल खपत
ड्रिप इरीगेशन (टपक प्रणाली) से कम समय में हम फसल को आवश्यकतानुसार पानी देकर पानी की बर्बादी सहित सिंचाई का खर्चा भी बढ़ा सकते हैं। यही कारण है, कि सरकार का ड्रिप एवं स्प्रिंकलर तरीके से सिंचाई पर काफी ध्यान केंद्रित है। इसके लिए योगी सरकार लघु सीमांत कृषकों को निर्धारित रकबे के लिए 90 प्रतिशत और अन्य कृषकों को 80 प्रतिशत तक अनुदान देती है।
ड्रिप सिंचाई हेतु योगी सरकार अनुदान मुहैय्या करा रही है
इसी कड़ी में गन्ना विभाग की तरफ से भी एक कवायद की गई है। वह ड्रिप इरीगेशन से बेहतरीन उत्पादन पाने के लिए कृषकों को 20 प्रतिशत ब्याज मुक्त लोन प्रदान करेगी। बतादें, कि इसकी अदायगी गन्ना मूल्य भुगतान से हो सकेगी। यह लोन किसानों को चीनी मिलें और गन्ना विकास विभाग उपलब्ध कराने में मदद करेगा। इससे राज्य के 90 प्रतिशत से ज्यादा गन्ना उत्पादक किसानों को लाभ मिलेगा। यह किसानों का वही वर्ग है, जो चाहते हुए भी संसाधनों के अभाव के चलते खेती में यंत्रीकरण का अपेक्षित फायदा प्राप्त नहीं कर पाता है। दरअसल, ज्यादा श्रम एवं संसाधन लगाने के बावजूद भी उसको कम फायदा उठा पाते हैं।
टपक सिंचाई से कम लागत में अधिक उपज के साथ होंगे विभिन्न फायदे
ड्रिप इरिगेशन एक फायदेमंद तकनीक है। जल की अत्यधिक खपत के अतिरिक्त प्रत्यक्ष तौर पर पौधों की जड़ों में घुलनशील उर्वरक भी दे सकते हैं। इस प्रकार से खाद के पोषक तत्वों की प्रचूर मात्रा में आपूर्ति के चलते गन्ने की पैदावार में भी वृद्धि होगी। दरअसल, इसके माध्यम से सिंचाई करने में जल की खपत कम, श्रम की बचत साथ ही न्यूनतम खाद के इस्तेमाल से पैदावार भी अच्छी होती है। परिणामस्वरूप, कम लागत और अधिक पैदावार की वजह से कृषकों की आमदनी में वृद्धि होगी। यूपी सरकार की यह प्राथमिकता भी है। इसी कड़ी में यूपी शुगर मिल्स असोसिएशन एवं विश्व बैंक के संसाधन समूह के मध्य एक मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग भी हो गई है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना विकास कोष की स्थापना की है
इसी प्रकार खेत की तैयारी से लेकर रोपाई एवं उससे आगे गन्ना उत्पादकों हेतु संसाधन बाधक बनें। इस बात को लेकर सरकार द्वारा गन्ना विकास कोष स्थापित करने का भी फैसला लिया गया है। इसमें भी नाबार्ड की भाँति 10.70. इस पर 3.70 प्रतिशत की छूट भी होगी। यह कर्जा उन लघु सीमांत किसानों को मिल पाएगा जो गन्ना समितियों में पंजीकृत होंगे।
6 वर्ष में कितने गन्ना उत्पादकों का भुगतान किया गया है
योगी जी ने जब मार्च 2017 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी। उस वक्त गन्ने का बकाया, संचलन में चीनी मिलों का मनमानी आचरण गन्ना कृषकों की प्रमुख परेशानी थी। क्योंकि, इसकी खेती से लाखों की संख्या में किसान परिवार जुड़े हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बहुत सारे जनपदों की मुख्य फसल ही गन्ना है। दरअसल, गन्ना मूल्य के बकाए पर ही कुछ लोगों की राजनीति चलती थी। क्योंकि, यह किसानों का एक प्रमुख मुद्दा है। मिलों की मनमानी से किसानों को इस हद तक परेशानी थी, कि किसान अपने खेत में ही गन्ना को आग लगा देते थे।
ये भी पढ़ें: इधर गन्ना पहुंचा, उधर भुगतान तैयार
एक मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ ने अपने प्रथम कार्यकाल में गन्ना किसानों के भुगतान पर ध्यान केंद्रित किया था। नतीजतन, गन्ना उत्पादकों को रिकॉर्ड भुगतान हुआ। मुख्यमंत्री जी के प्रथम कार्यकाल समापन के बाद अब दूसरे कार्यकाल का एक वर्ष पूर्ण होने पर जारी किए गए आकड़ों के अनुसार, गन्ना किसानों को दो लाख दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान किया जा चुका है। जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। सरकार की तरफ से मिलर्स को साफ निर्देशित किया गया है, कि जब तक किसानों के खेत में गन्ना मौजूद है, तब तक मिलें बंद नहीं की जाऐंगी। इसके अतिरिक्त भुगतान की समयावधि भी निर्धारित की गई है। ऑनलाइन भुगतान के माध्यम से इसको पारदर्शी भी बनाया गया है।